दीपक चौहान का जन्म 1981में महाराष्ट्र के मुम्बई शहर की झोपड़पट्टी में हुआ उनकीे माता राजमती देवी और पिता बड़ेलाल चौहान उत्तरप्रदेश के वाराणसी जिले के छोटे से गांव जरियारी के रहने वाले थे रोटी रोजगार के लिए मुम्बई आके मजदूरी करने लगे दीपक चौहान अपने माता पिता के बड़े पुत्र है उनके बाद एक भाई बबलू चौहान बहन ज्योति चौहान
दीपक चौहान की सुरुवाती कच्छा 10 की पढ़ाई लिखाई मुम्बई के पाल राजेन्द्र हिंदी हाई स्कूल में हुई 12हवि तक कि पढ़ाई पूरी करने तक दीपक चौहान के मन मे जिज्ञासाओं का पहाड़ खड़ा होने लगा पिता की तंग हालात देखकर दीपक चौहान का पढ़ाई में मन न लगने के कारण दीपक चौहान ने पिता का हाथ बटाना सुरु किया पर वहाँ पर भी उनका मन नही लगा
2003 में एक किसी अस्मारिणीय घटना ने दीपक चौहान को राजनीति की ओर जाने की जिज्ञासा जगा दी जिसका जिक्र वो नही करना चाहते फिर दीपक कुछ सीखने की चाहत मन मे उबाल मारने लगी दीपक चौहान ने अपने जीवन के 27 वर्षो तक तकरीबन मजदूरी से सम्बधित लगभग सभी काम कर चुके थे फिर भी उनके मन मे कोई एक अनजान सफर की जिज्ञासा जगती रहती फिर 6 जून 2006 को दीपक चौहान का विवाह ममता चौहान वाराणसी से सम्पन्न हुआ फिर कुछ ही दिनों में दीपक चौहान के घर एक पुत्री निकिता का जन्म हुआ फिर एक पुत्र सूर्यप्रताप व एक अन्य पुत्री ऐशनी का जन्म हुआ इन सभी मे दीपक चौहान 31 वर्ष के हो चुके थे फिर एक बार उनकी राजनैतिक चेतना जागी पर परिवार की जिम्मेदारी ने घेर रखा था 2014 के लोकसभा चुनाव में उनका मन यह देख कर आहत हो गये कि राजनीति में पैसों का बहुत महत्व है और उन्होंने राजनीत को एक नई दिशा देने का दृढ़ संकल्प किया उन्होंने तैयारी सुरु करदी व राजनीत से जुड़े सभी गुड़ सीखने लगे कई किताबो के अध्ययन व सफल राजनेताओ की जीवनी पढ़ने के बाद सन 2016 में दीपक चौहान ने चुनाव में उतारने का मन बनाया जिसके लिए उन्होंने अपने माता पिता पत्नी भाई व बहन को एक साथ बैठाकर राजनीत में जाने की इच्छा जाहिर की ओर उनके इस फैसले को घर के सभी लोगो ने सहमति दे दी अब बड़ी चिनौति थी दीपक चौहान को की वो चुनाव कहा व किस दल से लडे
तो उन्होंने राजनीत को सेवनित के भाव से देखते हुए पिण्डरा 384 वाराणसी से बाहुबली नेता अजयराय के विरोध में चुनाव लड़ने का मन बनाया फिर जरूरत थी एक राजनैतिक दल की उन्होंने कई दल से संपर्क बनाया लेकिन बात बानी नही उस दौरान जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट)
अपने बुरे दौर में चल रही थी पार्टी का संगठन बिखर चुका था लेकिन पार्टी के मुखिया डॉ संजय सिंह चौहान के हौसले व उनके त्याग को देखते हुए दीपक चौहान ने जनवादी पार्टी की सदस्यता ली और चुनाव में कूद पड़े जनवादी पार्टी के बचे खुचे कार्यकर्ताओ के साथ मिलकर चुनाव उन्होंने एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह लड़ा लेकिन जनता ने उनपर पहली बार मे ही विस्वास नही किया इस दौरान दीपक चौहान की काफी लोकप्रियता मिलने लगी अपने दृढ़ निश्चय को आकार देने के लिए दीपक चौहान ने दिन रात एक करके पार्टी को पूर्वांचल में खड़ा करने का काम किया जिसका इनाम भी उनको पार्टी ने दिया और उनको प्रदेश कार्यकारणी में शामिल कर लिया गया इन सबके बीच दीपक चौहान का रोजगार पूरी तरह से टूट गया लेकिन दीपक चौहान ने हार नही मानी
दिन रात पार्टी के लिए एक कार दिया यह भी भूल गए कि उनके परिवार के लोग अब आर्थिक कमजोरी का सामना करने लगे उनके बच्चों के पढ़ाई लिखाई पर भी इसका असर दिखने लगा फिर भी वह इंसान नही माना और फिर कई दलों के लोग दीपक चौहान को अपने मिलना चाहते थे लेकिन दीपक जी ने सभी प्रस्ताव ठुकराते हुए जनवादी के साथ पकड़े रखा और वह दिन भी आया की जब जनवादी पार्टी सोशलिस्ट को पूरा देश जानने व पहचानने लगा अखिलेश यादव पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय अध्यक्ष समाजवादी पार्टी के व जनवादी पार्टी की जॉइन्ट चुनाव लड़ने की चर्चा
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